Ritesh Agarwal diary



Hello friends,
here you will find some poems/articles written by Ritesh Agarwal.



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अभिभावक का दर्द



by Ritesh Agarwal





आज एक अभिभावक से मुलाकात हुई ,
पढाई के अलावा भी कुछ बात हुई |
माँ बाप की वो एक ही संतान है ,
जिसके भविष्य को लेकर वे परेशान हैं | |

IIT कराने के लिए सब कुछ लुटा दिया ,
Loan का बोझ भी सर पे चढ़ा लिया |
तमन्नाओं को दिल में दबा लिया ,
औलाद की खातिर सब कुछ लुटा दिया | |

पर बेटे को इसकी चींता कहाँ है ,
उसने उनके दर्द को समझा कहाँ है |
हर फिल्म का फर्स्ट शो देखने जाता है ,
कोचिंग से ज्यादा उपस्थिथि netcafe मे दर्ज कराता है ||

पूछने पर बहाने हज़ार बनाता है ,
पढाई का नाम लेकर पैसे उड़ाता है |
एक बार की बात है, माँ-बाप बाज़ार गए थे ,
आइसक्रीम खाने का मन हुआ, पर जेब मे 40 रुपये ही पड़े थे |
उन्हें याद आया बेटे के लिए रजिस्टर भी लेना है ,
बेटे का ध्यान आते ही अपने मन को समझा लिया ,
रजिस्टर लिया, आइसक्रीम खाना भुला दिया |

ऐसा ही त्याग जाने उन्होंने कितनी बार किया होगा ,
बेटे की खातिर अपनी मन की इच्छायों को दबा लिया होगा |
अपने मन को मार कर जिन्होंने बेटे को सब दिया ,
वही बेटा उनसे झूठ बोलकर मस्ती करता गया | |

माँ-बाप का जीवन तो कट गया ,
जाने उसका भविष्य क्या होगा |
क्या वो अपने बच्चों को उतना भी दे पायेगा जितना उसे मिला था ,
और अगर दे भी पाया तो क्या अपने बच्चे को अपने जैसा बनाना चाहेगा


सूना - सूना घर



by Ritesh Agarwal





सूना - सूना सा ये घर नज़र आता है ,

शायद तेरे जाने का असर नज़र आता है ।

यूँ तो अकेले रहने की भी आदत थी हमें ,

पर अब तो अकेलापन भी पराया सा नज़र आता है ।। सूना -सूना ....


क्या कहूँ इसे, कि याद आती है तेरी,

या खुद का स्वार्थ नज़र आता है ।

तुम भी कहोगे सब बेकार की बातें हैं ,

चेहरे से तो ये शक्श बेफिकर नज़र आता है ।। सूना -सूना ....


दिल के आलम को कौन समझ सका है ,

जिसने समझा वो ही साथ ठहर पाता है ।

जीने को तो हम यूं भी जी लेंगे ,

एक खुदा तो है जो सदा साथ निभाता है ।। सूना -सूना ....



दिल की आवाज़



by Ritesh Agarwal





ना ज़ात में ना पात में,

बदलाव है जस्बात में|

ना मरने का खौफ है,

ना मारने का अपराधबोध,

जाने भविष्य (youth of country) है किस हालात में||


सोचता हूँ जो कर रहा हूँ,

आख़िर क्योँ?

क्या जाएगा मेरे साथ में?

चाहता हूँ कोई दुखी ना हो,

पर ये भी कहाँ मेरे हाथ में......



बचपन की यादें



by Ritesh Agarwal





बहुत दिनों बाद स्कूल के दोस्तों से फिर जुड़ पाया,

समझ आया की इतने सालो में क्या खोया क्या पाया।

बचपन में स्कूल के नाम से भी भागते थे,

बड़ी मुश्किल से सुबह सुबह जागते थे।|


धीरे धीरे कुछ दोस्त बने और कुछ चेहरे आकर्षक लगे,

फिर तो खुद से ही स्कूल जाने को मचल जाते थे,

आधा घंटे पहले ही स्कूल पंहूच जाते थे।

टीचर्स की सज़ा भी हंसकर झेल जाते थे,

हमारे दोस्त भी तो अक्सर हमारे साथ ही मुर्गा बने पाए जाते थे।|


वो छोटी छोटी बातों में लड़ना झगड़ना,

वो टीचर्स से दूसरों की शिकायतें करना।

कभी किसी को सज़ा दिलवाना,

कभी खुद ही किसी की शिकायत में फंस जाना। |


वो birthday, diwali के ग्रीटिंग्स बनाना,

वो एक दुसरे का टिफिन मिल बांट खाना।

वो क्लासरूम में boys girls अंताक्षरी का होना,

फेवरेट टीचर के जाने पे रोना।|


बहुत कुछ अब याद आने लगा है,

मन फिर बचपन में जाने लगा है।

काश वो दिन फिर से जी पाते,

दोस्तों के साथ फिर वक्त बिताते।

वो नादान मन कि मासूम बातें,

तुम हमे बताते, हम तुम्हें बताते।



Ritesh Agarwal



ritesh.bhopal@gmail.com


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