बहुत दिनों बाद स्कूल के दोस्तों से फिर जुड़ पाया,
समझ आया की इतने सालो में क्या खोया क्या पाया।
बचपन में स्कूल के नाम से भी भागते थे,
बड़ी मुश्किल से सुबह सुबह जागते थे।|
धीरे धीरे कुछ दोस्त बने और कुछ चेहरे आकर्षक लगे,
फिर तो खुद से ही स्कूल जाने को मचल जाते थे,
आधा घंटे पहले ही स्कूल पंहूच जाते थे।
टीचर्स की सज़ा भी हंसकर झेल जाते थे,
हमारे दोस्त भी तो अक्सर हमारे साथ ही मुर्गा बने पाए जाते थे।|
वो छोटी छोटी बातों में लड़ना झगड़ना,
वो टीचर्स से दूसरों की शिकायतें करना।
कभी किसी को सज़ा दिलवाना,
कभी खुद ही किसी की शिकायत में फंस जाना। |
वो birthday, diwali के ग्रीटिंग्स बनाना,
वो एक दुसरे का टिफिन मिल बांट खाना।
वो क्लासरूम में boys girls अंताक्षरी का होना,
फेवरेट टीचर के जाने पे रोना।|
बहुत कुछ अब याद आने लगा है,
मन फिर बचपन में जाने लगा है।
काश वो दिन फिर से जी पाते,
दोस्तों के साथ फिर वक्त बिताते।
वो नादान मन कि मासूम बातें,
तुम हमे बताते, हम तुम्हें बताते।